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समि॑द्धाग्निर्वनवत्स्ती॒र्णब॑र्हिर्यु॒क्तग्रा॑वा सु॒तसो॑मो जराते। ग्रावा॑णो॒ यस्ये॑षि॒रं वद॒न्त्यय॑दध्व॒र्युर्ह॒विषाव॒ सिन्धु॑म् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

samiddhāgnir vanavat stīrṇabarhir yuktagrāvā sutasomo jarāte | grāvāṇo yasyeṣiraṁ vadanty ayad adhvaryur haviṣāva sindhum ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

समि॑द्धऽअग्निः। व॒न॒व॒त्। स्ती॒र्णऽब॑र्हिः। यु॒क्तऽग्रा॑वा। सु॒तऽसो॑मः। ज॒रा॒ते॒। ग्रावा॑णः। यस्य॑। इ॒षि॒रम्। वद॑न्ति। अय॑त्। अ॒ध्व॒र्युः। ह॒विषा॑। अव॑। सिन्धु॑म् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:37» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:8» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब शिल्पी विद्वान् के विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो (स्तीर्णबर्हिः) अर्थात् आच्छादित किया अन्तरिक्ष जिसने ऐसा और (युक्तग्रावा) युक्त मेघ जिससे (सुतसोमः) तथा प्रकट हुआ चन्द्रमा जिससे (समिद्धाग्निः) वह प्रदीप्त हुआ अग्नि सम्पूर्ण पदार्थों का (वनवत्) सम्भोग करता है (यस्य) जिसके (इषिरम्) गमन को (ग्रावाणः) मेघ (वदन्ति) शब्द से सूचित करते हैं, जिसको (अध्वर्युः) शिल्पविद्या की कामना करता हुआ जन (हविषा) अग्नि में छोड़ने योग्य सामग्री से (सिन्धुम्) समुद्र को (अव, अयत्) प्राप्त होता और (जराते) स्तुति करता है, उस अग्नि का कार्य्यों में संप्रयोग करो ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! जो अग्नि सम्पूर्ण पदार्थों में व्याप्त और बहुत उत्तम गुण और क्रियावान् है, उसको जानकर कार्य्यों को सिद्ध करो ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ शिल्पिविद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यः स्तीर्णबर्हिर्युक्तग्रावा सुतसोमः समिद्धाग्निः सर्वान् पदार्थान् वनवद् यस्येषिरं ग्रावाणो वदन्ति यमध्वर्युर्हविषा सिन्धुमवायज्जराते च तमग्निं कार्य्येषु संप्रयुङ्क्ष्व ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (समिद्धाग्निः) प्रदीप्तः पावकः (वनवत्) सम्भजते (स्तीर्णबर्हिः) स्तीर्णमाच्छादितं बर्हिरन्तरिक्षं येन सः (युक्तग्रावा) युक्तो ग्रावा मेघो येन (सुतसोमः) सुतः सोमो यस्मात् (जराते) स्तौति (ग्रावाणः) मेघाः (यस्य) (इषिरम्) गमनम् (वदन्ति) (अयत्) गच्छति (अध्वर्युः) अध्वरं शिल्पविद्यां कामयमानः (हविषा) अग्नौ प्रक्षेप्य सामग्र्या (अव) (सिन्धुम्) समुद्रम् ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! योऽग्निः सर्वेषु पदार्थेषु व्याप्तो बहूत्तमगुणक्रियावान् वर्त्तते तं विज्ञाय कार्य्याणि साध्नुत ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थर् - हे विद्वानांनो! जो अग्नी संपूर्ण पदार्थांत व्याप्त असून अत्यंत उत्तम गुण व क्रियायुक्त आहे हे जाणून क्रिया करा. ॥ २ ॥